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रूस से पंगा क्यों ले रहा अजरबैजान? जंग में फंसे पुतिन के लिए 30000 अतिरिक्त सैनिक भेजेगा उत्तर कोरिया

मॉस्को
 यूक्रेन के साथ युद्ध में उलझे रूस को उत्तर कोरिया के तानाशाह किम जोंग उन ने बड़ी मदद भेजने का फैसला किया है। सीएनएन की रिपोर्ट के अनुसार, उत्तर कोरिया ने पुतिन की खातिर लड़ने के लिए 30,000 अतिरिक्त सैनिक भेजेगा। सीएनएन ने यूक्रेनी खुफिया दस्तावेजों के हवाले से बताया है कि ये सैनिक नवम्बर तक रूस पहुंच सकते हैं। इन्हें रूसी टुकड़ी को मजबूती देने के लिए भेजा जा रहा है, जिसमें बड़े पैमाने पर आक्रामक सैन्य अभियान भी शामिल हैं। इसक साथ ही सैटेलाइट से हासिल तस्वीरों में रूस की तैयारियों के संकेत मिले हैं।

सैटेलाइट तस्वीरों में उत्तर कोरियाई तैनाती के लिए पहले इस्तेमाल किए गए जहाजों को रूसी बंदरगाहों में देखा गया और कार्गो विमानों के उड़ान पैटर्न से पता चला कि सैनिकों को रूस लाने वाले मार्ग सक्रिय थे। उत्तर कोरिया ने पिछले साल 11,000 सैनिकों को रूस की तरफ से लड़के लिए भेजा था। रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने अप्रैल में उनकी मौजूदगी की पुष्टि की थी। यह घटनाक्रम ऐसे समय में सामने आया है, जब अमेरिकी ने यूक्रेन को वायु रक्षा मिसाइलों की खेप रोकने का फैसला किया है।

रूस और यूक्रेन में शांति वार्ता
रूस और यूक्रेन लंबी लड़ाई के बाद अब शांति की दिशा में कदम उठा रहे हैं। दो दौर की बातचीत लगभग सफल रही और अब क्रेमलिन को उम्मीद है कि रूस-यूक्रेन वार्ता के तीसरे दौर की तारीख जल्द तय हो सकती है। क्रेमलिन के प्रवक्ता दिमित्री पेस्कोव ने कहा कि हमें उम्मीद है कि इस पर जल्द ही सहमति बन जाएगी। उन्होंने दोहराया कि वार्ता का कार्यक्रम दोनों पक्षों की सहमति से ही तय किया जा सकता है।

पेस्कोव ने स्पष्ट किया कि अभी तक कोई निश्चित तारीख तय नहीं हुई है और यह प्रक्रिया आपसी सहमति पर आधारित है। उन्होंने कहा, 'यह एक पारस्परिक प्रक्रिया है।' क्रेमलिन के प्रवक्ता के मुताबिक, अगली वार्ता प्रक्रिया की गति कीव शासन और अमेरिका के मध्यस्थता करने के प्रयासों पर निर्भर करती है। उन्होंने कहा, 'जमीनी हकीकत को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता और उसे ध्यान में रखना जरूरी है।'

रूस से पंगा क्यों ले रहा अजरबैजान?

रूस और अजरबैजान के बीच हाल के दिनों में तनाव तेजी से बढ़ा है। ये दोनों देश कभी सोवियत संघ का हिस्सा थे और लंबे समय तक एक-दूसरे के करीबी सहयोगी रहे, लेकिन अब एक गंभीर राजनयिक विवाद में उलझ गए हैं। इस तनाव की शुरुआत कुछ खास घटनाओं से हुई, जिन्होंने दोनों देशों के रिश्तों को गहरी चोट पहुंचाई है। अजरबैजान के बारे में बता दें कि इस देश के भारत के भी रिश्ते कुछ खास नहीं हैं। अजरबैजान खुलकर भारत के दुश्मन देश यानी पाकिस्तान का समर्थन करता है। आइए, समझते हैं कि ये तनाव क्यों और कैसे बढ़ा, और इसके पीछे की वजहें क्या हैं।

कैसे हुई तनाव की शुरुआत? ये हैं प्रमुख वजहें-

1. येकातेरिनबर्ग में अजरबैजानी नागरिकों की मौत

27 जून को रूस के येकातेरिनबर्ग शहर में रूसी पुलिस ने अजरबैजानी मूल के लोगों के खिलाफ एक बड़ी छापेमारी की। यह छापेमारी 2000 के दशक की कुछ हत्याओं की जांच के लिए थी, जिनमें अजरबैजानी अपराधी गिरोहों का हाथ माना जा रहा था। इस दौरान दो अजरबैजानी भाई, हुसेन और जियाद्दिन सफारोव की हिरासत में मौत हो गई। अजरबैजान का दावा है कि इन दोनों को रूसी पुलिस ने क्रूरता से पीटा और यातना दी, जिससे उनकी मौत हुई। वहीं, रूस का कहना है कि एक की मौत दिल का दौरा पड़ने से हुई, और दूसरी मौत की जांच चल रही है। अजरबैजान ने इसे "जानबूझकर हत्या" और "यातना" करार दिया, जिसके बाद दोनों देशों के बीच तनाव भड़क उठा।
2. अजरबैजान का जवाबी कदम: रूसी पत्रकारों की गिरफ्तारी

इस घटना के जवाब में, अजरबैजान ने बाकू में रूसी सरकार द्वारा संचालित मीडिया आउटलेट "स्पूतनिक अजरबैजान" के दफ्तर पर छापा मारा। इस छापेमारी में स्पूतनिक के दो वरिष्ठ पत्रकारों, इगोर कार्ताविख और येवगेनी बेलौसोव सहित सात रूसी नागरिकों को गिरफ्तार किया गया। उन पर धोखाधड़ी, अवैध व्यापार और मनी लॉन्ड्रिंग जैसे आरोप लगाए गए। इसके अलावा, लगभग 15 अन्य रूसी नागरिकों को ड्रग तस्करी और साइबर अपराध के आरोप में हिरासत में लिया गया। रूस ने इन गिरफ्तारियों को "अनुचित" और "प्रतिशोधी" बताया, जिससे विवाद और गहरा हो गया।

इसके साथ ही आठ रूसी आईटी विशेषज्ञों को भी नशीली दवाओं और साइबर अपराध के आरोप में पकड़ा गया, जिनके चेहरे पर गंभीर चोटों के निशान देखे गए। इन तस्वीरों ने रूस में आक्रोश फैला दिया। रूस ने इस पर तीखी प्रतिक्रिया देते हुए अजरबैजान के राजदूत को तलब किया और इसे “संबंधों को कमजोर करने की सोची-समझी कोशिश” करार दिया। जवाब में अजरबैजान ने भी रूसी राजदूत को तलब किया और येकातेरिनबर्ग की घटनाओं की निष्पक्ष जांच, दोषियों की सजा और पीड़ितों के लिए मुआवजे की मांग दोहराई।
3. प्लेन क्रैश का पुराना विवाद

तनाव की एक और बड़ी वजह दिसंबर 2024 में हुआ एक हवाई जहाज हादसा है। अजरबैजान एयरलाइंस का एक यात्री विमान, जिसमें 67 लोग सवार थे, रूस के ग्रोज्नी शहर के पास दुर्घटनाग्रस्त हो गया था। इस हादसे में 38 लोगों की मौत हो गई। अजरबैजान का दावा है कि रूसी हवाई रक्षा प्रणाली ने गलती से इस विमान पर हमला किया। अजरबैजानी मीडिया ने हाल ही में कुछ ऑडियो रिकॉर्डिंग जारी कीं, जिनमें कथित तौर पर रूसी सैन्य अधिकारियों को विमान पर गोली चलाने का आदेश देते सुना गया। रूस ने इस हादसे की जिम्मेदारी लेने से इनकार किया है और उस पर घटना को दबाने का आरोप लगा है। अजरबैजान के राष्ट्रपति इल्हाम अलीयेव ने रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से औपचारिक माफी की मांग की है, जिसे रूस ने ठुकरा दिया।
4. रूसी स्कूलों पर प्रतिबंध और सांस्कृतिक कदम

अजरबैजान ने रूस के खिलाफ अपने गुस्से को जाहिर करने के लिए और भी कदम उठाए। उसने देश में रूसी भाषा के स्कूलों को धीरे-धीरे बंद करने की घोषणा की। अजरबैजान में करीब 340 रूसी भाषा के स्कूल हैं, जिनमें 1.5 लाख से ज्यादा छात्र पढ़ते हैं। इसके अलावा, अजरबैजान ने रूस से जुड़े सभी सांस्कृतिक कार्यक्रमों को रद्द कर दिया और रूसी संसद के साथ नियोजित बैठकों को भी स्थगित कर दिया। ये कदम रूस के लिए बड़ा झटका हैं, क्योंकि वह दक्षिण काकेशस क्षेत्र में अपनी सांस्कृतिक और राजनीतिक पकड़ बनाए रखना चाहता है।
तनाव के पीछे की गहरी वजहें

इन तात्कालिक घटनाओं के अलावा, कुछ गहरे और दीर्घकालिक कारण भी हैं, जो इस तनाव को और बढ़ा रहे हैं:
अजरबैजान का तुर्की के साथ बढ़ता रिश्ता

अजरबैजान और तुर्की के बीच सैन्य और आर्थिक रिश्ते हाल के वर्षों में बहुत मजबूत हुए हैं। तुर्की ने 2020 और 2023 में अजरबैजान को नागोर्नो-काराबाख क्षेत्र में आर्मेनिया के खिलाफ सैन्य समर्थन दिया, जिससे अजरबैजान की स्थिति मजबूत हुई। रूस पहले इस क्षेत्र में शांति सैनिकों के जरिए अपनी पकड़ रखता था, अब अपनी स्थिति कमजोर होती देख रहा है। 2023 में रूसी शांति सैनिकों की वापसी के बाद रूस का प्रभाव और कम हो गया। तुर्की का बढ़ता प्रभाव रूस को खटक रहा है, क्योंकि वह दक्षिण काकेशस को अपने प्रभाव क्षेत्र के रूप में देखता है।
रूस-यूक्रेन युद्ध का असर

रूस का ध्यान इस समय यूक्रेन युद्ध पर केंद्रित है, जिसके कारण वह दक्षिण काकेशस में अपनी पकड़ बनाए रखने में कमजोर पड़ रहा है। अजरबैजान ने इस मौके का फायदा उठाते हुए अपनी नीतियों को और मजबूत किया है। उदाहरण के लिए, अजरबैजानी सरकारी टीवी चैनल AZTV ने हाल ही में यूक्रेन युद्ध में रूस की नाकामियों को उजागर करने वाला एक कार्यक्रम प्रसारित किया, जो रूस के लिए अपमानजनक था। इसके अलावा, अजरबैजान के राष्ट्रपति इल्हाम अलीयेव ने यूक्रेनी राष्ट्रपति वोलोदिमीर जेलेंस्की से फोन पर बात की। जेलेंस्की ने अजरबैजान को “रूस की धौंस के खिलाफ समर्थन” का आश्वासन दिया। इस वार्ता को रूस में उत्तेजक कूटनीतिक संकेत के रूप में देखा जा रहा है।
क्षेत्रीय गलियारों का विवाद

अजरबैजान और तुर्की जंगेज़ुर कॉरिडोर को खोलने की कोशिश कर रहे हैं, जो अजरबैजान को उसके नखचिवान क्षेत्र और तुर्की से जोड़ेगा। यह कॉरिडोर आर्मेनिया से होकर गुजरेगा, जिसका रूस और ईरान विरोध करते हैं। रूस इसके बजाय नॉर्थ-साउथ ट्रांसपोर्ट कॉरिडोर को बढ़ावा दे रहा है, जो अजरबैजान, ईरान और भारत से होकर गुजरता है। इन गलियारों को लेकर दोनों देशों के हित टकरा रहे हैं, जिससे तनाव बढ़ रहा है।
रूस की आंतरिक राजनीति और प्रवासियों पर दबाव

रूस में अजरबैजानी प्रवासियों की बड़ी आबादी है, और हाल के वर्षों में रूस में अल्पसंख्यक समुदायों, खासकर मुस्लिम-बहुल देशों से आए प्रवासियों के खिलाफ भेदभाव की शिकायतें बढ़ी हैं। येकातेरिनबर्ग की छापेमारी को अजरबैजान ने नस्ली भेदभाव और अत्याचार के रूप में देखा। दूसरी ओर, रूस का कहना है कि यह छापेमारी अपराधी गतिविधियों को रोकने के लिए थी। इस तरह की घटनाएँ दोनों देशों के बीच अविश्वास को और गहरा रही हैं।
पहले अच्छे रहे संबंध

1993 में अलीयेव के पिता हेदर अलीयेव के सत्ता में आने के बाद से रूस और अजरबैजान के बीच आर्थिक, सांस्कृतिक और व्यापारिक संबंध मजबूत रहे हैं। रूस अजरबैजान के फलों और सब्जियों का बड़ा बाजार है, और अजरबैजानी व्यापारी रूस की अचल संपत्ति और निर्माण क्षेत्र में प्रभाव रखते हैं। रूस में लगभग 20 लाख अजरबैजानी प्रवासी रहते हैं।

लेकिन 2020 में अजरबैजान द्वारा तुर्की के समर्थन से नागोर्नो-कराबाख पर फिर से नियंत्रण हासिल करने के बाद से क्षेत्रीय समीकरण बदल गए। 2023 में अजरबैजान ने एक तेज अभियान के तहत कराबाख पर पूरी तरह से नियंत्रण पा लिया और रूस, जो यूक्रेन युद्ध में उलझा हुआ है वह हस्तक्षेप नहीं कर पाया।
भारत के खिलाफ पाक का समर्थन करता है अजरबैजान

मुस्लिम देश अजरबैजान ने भारत के खिलाफ पाक का समर्थन किया है। इसकी वजह भारत के आर्मेनिया के संबंध भी हैं। भारत और आर्मेनिया के बीच गहरे ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और कूटनीतिक संबंध हैं, जो रूस-अजरबैजान तनाव के संदर्भ में विशेष रूप से प्रासंगिक हैं, क्योंकि आर्मेनिया और अजरबैजान के बीच नागोर्नो-काराबाख विवाद के कारण तनावपूर्ण रिश्ते हैं। भारत ने आर्मेनिया के साथ अपने संबंधों को हाल के वर्षों में मजबूत किया है, खासकर रक्षा और व्यापार के क्षेत्र में। भारत ने आर्मेनिया को स्वदेशी हथियार प्रणालियां, जैसे अकाश मिसाइल सिस्टम और पिनाका मल्टी-बैरल रॉकेट लॉन्चर, आपूर्ति किए हैं, जिससे आर्मेनिया की सैन्य क्षमता बढ़ी है।

अजरबैजान ने भारत के ऑपरेशन सिंदूर के दौरान पाकिस्तान का खुलकर समर्थन किया था, जिसमें भारत ने पहलगाम में 26 नागरिकों की हत्या के जवाब में पाकिस्तान और पाकिस्तान-अधिकृत कश्मीर (PoK) में आतंकी ठिकानों पर हमला किया था। अजरबैजान के इस रुख के बाद भारत में #BoycottAzerbaijan और #BoycottTurkey जैसे कैंपेन ट्रेंड करने लगे, जिसके परिणामस्वरूप पर्यटन में 60% की कमी और 250% की कैंसिलेशन रेट देखी गई। कई भारतीयों ने अजरबैजान के बजाय आर्मेनिया और ग्रीस जैसे देशों को पर्यटन स्थल के रूप में चुनने की सलाह दी, क्योंकि आर्मेनिया ने भारत के प्रति मित्रता दिखाई है।
आगे क्या हो सकता है?

फिलहाल रूस-अजरबैजान देशों के बीच कूटनीतिक संवाद बेहद तनावपूर्ण मोड़ पर पहुंच गया है। विशेषज्ञ मानते हैं कि तुर्की और यूक्रेन के साथ अज़रबैजान की बढ़ती नज़दीकी और रूस की दक्षिण काकेशस में घटती पकड़ इस तनाव को और बढ़ा सकती है। अब यह देखना बाकी है कि क्या पुतिन और अलीयेव के बीच सीधा संवाद इस संकट को सुलझा पाएगा या टकराव और गहराएगा।

कैदियों की अदला-बदली
रूस-यूक्रेन के बीच पहली बैठक में कैदियों की अदला-बदली पर सहमति बनी थी, जबकि दूसरी बैठक में 6000 यूक्रेनी सैनिकों के शवों की वापसी, बीमार और 25 साल से कम उम्र के कैदियों की अदला-बदली पर सहमति बनी थी। पहले दौर की वार्ता 16 मई को इस्तांबुल में हुई, जबकि दूसरे दौर में 2 जून को तुर्किए में दोनों देशों के बीच बातचीत हुई थी। पिछली बैठक में यूक्रेन के रक्षा मंत्री रुस्तम उमरोव ने प्रस्ताव दिया था कि तीसरी बैठक जून के आखिरी हफ्ते में आयोजित की जाए, लेकिन ये वार्ता नहीं हो पाई।

सहमति के बावजूद रूसी मीडिया ने बताया कि क्रेमलिन ने संघर्ष विराम के लिए दो प्रस्ताव दिए थे, जिनमें यूक्रेनी सेना को चार क्षेत्रों (डोनेत्स्क, लुहान्स्क, खेरसॉन और जापोरिज्जिया) से हटने की मांग की गई थी, जिन्हें रूस अपना हिस्सा मानता है। इसके अलावा 100 दिनों के भीतर यूक्रेन में राष्ट्रपति चुनाव कराने की शर्त रखी गई थी। यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमीर जेलेंस्की इन मांगों को शांति की मंशा के विपरीत बता रहे हैं। उनकी तरफ से नए प्रतिबंधों की मांग की गई। जेलेंस्की का मानना है कि ये मांगें वास्तव में यूक्रेन के सरेंडर करने की शर्तें हैं, जिसे वो स्वीकार नहीं करेंगे।

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